Sunday, August 3, 2008

उफ ये औरतें !

फ्रेंडशिप डे तो जी का जंजाल हो गया.. ना जाने किस का मैसेज आ गया मोइबाल पर इस दोस्ती वाले दिन के नाम पर ..
बीबी पड़ गई पीछे.. कौन है
मैं - क्या पता
लेकिन सोच रहा था.. वाकई कौन होगा
बीबी-किसी लड़की का होगा.. किस लड़की का है
मैं-अरे भई मैं नहीं जानता किसने भेजा है ..
बीबी-तो फोन करो, किस लड़की का है. इंटर्न लड़कियां तुम्हारी दोस्त बन गई है.. खूब चक्कर चला रहे हो
मैं-उफ.
मैं तो परेशान हो गया था.. ये तो कमबख्त वैलेंटाइन डे भी नहीं .. कि इतना शक भी किया जाए बहरहाल
बीबी-किसके साथ चक्कर चल रहा है.. आजकल देख रहा हूं बदल गए हो. तुम तो मुझे...
फिर न जाने क्या.. क्या कान पक गया.. हमेशा किसी लड़की का मेरे साथ दोस्ती और चक्कर और टेप रिकार्डर जैसे चालू हो जाती है मेरी बीवी ... मैं तो परेशान हो गया हूं
मैं-अपने दिमाग से शक का कीड़ निकालो.. हमेशा इसी तरह से सोचना ठीक नहीं.. क्यूं मैं किसी लड़की के पीछे भागूं..
(ऑफिस घर... बिल्डर की परेशानी.. बढ़ता होम लोन इंटरेस्ट रेट क्या कम परेशानी है.. लेकिन इसे समझने वाला को नहीं)
बीबी-हां हां , क्यों नहीं.. खूब गुलछर्रे उड़ाओ. ऑफिस से आते हो तो मुझ से बातें नहीं करना चाहते .. देख लेना किसी दिन मैं इसी बालकनी से कूदकर जान दे दूंगी.. तुम्हारे लिए मैं या मेरे दोनों बेटे तो तुम्हा प्रायरिटी में हैं ही नहीं खाली सामाजिक बने रहे.. तुम इतना रुलाते हो ना. देख लेना जब चली जाऊंगी तो याद करोगे
मैं-क्यूं हमेशा तुम इसी तरह से सोचती रहती हो.. जरा पॉजिटिव रहा करो.
(अखबार में था तो लड़कियां या कहें तो औरत दफ्तर में एक - दो हुआ करती थीं. यहां टीवी में न जाने किस फैक्ट्री से लड़कियां आती जाती हैं. ज्यादातर सिफारशी और काम करें तो धेले की. और उनमें से किसी ने कुछ सीख लिया .. तो अनजाने में मेरे प्रति कृतज्ञ होजाती है. फिर फोन भी कर देती हैं.. और यही बात आफत बन जाती है ... )
बीबी-मुझे पता है तुम गुल खिला रहे हो.. मुझे पीछा छुड़ाना चाहते हो..
मैं- मौन (ज्यादा सवाल जवाब हो तो अब शादी के 6-7 साल बाद चुप रहना ज्यादा मुफीद लगता है )
बीबी-वो लड़की थी.. आधे घंटे उससे बातें करते थे और कहते थे.. कि हिमांशु से बात कर रहे हो मैं कोई नही पहचानती तुमको
मैं-फिर मौन (वाकई लड़कियां अगर मुसीबत वाले अंदाज में बातकरती हैं तो सहानुभूति तो हो ही जाती है ... नौकरी कैसे होगी. क्या जुगाड़ है. भले ही मैं कुछ नहीं कर सकता.. लेकिन दिल रखने के लिए तो इतना तो कह ही देता हूं. कि अगर दिल की इच्छा है सी लाइन में रहने का तो. संघर्ष करो. धैर्य रखो अगर सोचा है. कि पत्रकार बनना है. तो जरूर बनोगी. यही बात करना मूसीबत बन जाती है )
न जाने क्या क्या आरोप और बहस का दौड़ चलता रहता है. और आखिर में
बीबी-तुम मुझसे प्यार से बात भी तो नहीं करते
मैं-कैसे करूं. हमेशा तो शिकायत करती रहती हो ..
बीबी-तुम मेरे साथ कैसे व्यवहार करते हो .. दूर दूर सा
मैं-पता नहीं तुम क्या कहती हो.. मैंतो ऐसा कुछ नहीं सोचता..
बीबी करीब आ जीत है सीने से लग जाती है. मैं भी फिर बाल सहलाने लगता हूं...
मैं-कुछ ज्यादा ना सोचा करो.. भरोसा रखो मैं क्या तुमसे अलग रहने के बारे में सोच सकता हूं क्या
बीबी की आंखें भर आती है.. चुंबन.. आंसू में धुलने लगते हैं सारे रोष. सारी शिकायत..

लेकिन ये सच्चाई नहीं है.. अगली बार फिर किसी बात पर बहस वहीं पहुंच जाती है.. वही शिकायतें औ फिर से टेप रिकार्डर - तुम मुझे मारना चाहते हो.. मेरे लिए तुम्हारे पास कोई समय नहीं.
उफ ये औरतें .. मैं क्या करूं